“कर रहे हैं मोहब्बत ‘सुख़नवर’ आज ज़ाहिर ऐसे
न गुज़रे इश्क़ की गलियों से ग़र फिर मुसाफ़िर कैसे।”
-कृति (सुख़नवर)
ये कहना गलत नहीं होगा कि ज़िन्दगी एक सफ़र है और हम सभी इस सफ़र का हिस्सा हैं एक मुसाफ़िर के रूप में। वो मुसाफ़िर जो हर रोज़ कई एहसासों की गलियों से गुजरता है जैसे इश्क़ की गली। जिसमें बहुत कुछ है पाने को, बहुत कुछ खोना पड़ता है किसी की ख़्वाइश है यहां से गुज़रना, किसी को इस गली से डरना पड़ता है लेकिन फिर भी हम सभी मुसाफ़िर ज़िन्दगी में एक दफ़ा तो ज़रूर इस गली से गुज़रते हैं।
“मुसाफ़िर-ए-इश्क़” किताब में इश्क़ की गलियों से गुज़रने वाले मुसाफ़िरों के सफ़र को गज़लों के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की गई है।
उम्मीद है आपको यह सफ़र बेहद ख़ूबसूरत लगेगा। तो चलिये चलते हैं इस सफ़र पर मुसाफ़िर-ए-इश्क़ बनकर।
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